केंद्रीय विद्यालय नबीनगर में क्षेत्रीय कार्यालय पटना तथा के.वि. सं. (मुख्यालय ) द्वारा बहुत सारी क्रियाकलापो को समय-समय पर आयोजित किया जाता हैं।
उनमें से कुछ तस्वीरें इस वेब ब्लॉग पर प्रदर्शित की जा रही हैं :
Under the Ministry of Education, Government of India
On 04.02.2021
from 19th June to 18th July 2021
Class IV students.
With Sh.Ashok Kumar, principal Kendriya Vidyalaya#1, Jaipur
Under the Ministry of Education, Government of India
केंद्रीय विद्यालय नबीनगर में क्षेत्रीय कार्यालय पटना तथा के.वि. सं. (मुख्यालय ) द्वारा बहुत सारी क्रियाकलापो को समय-समय पर आयोजित किया जाता हैं।
उनमें से कुछ तस्वीरें इस वेब ब्लॉग पर प्रदर्शित की जा रही हैं :
Autumn break in Kendriya Vidyalayas will start from 20/10/2023 to 29/10/2023. Vidyalaya will reopen on 30/10/2023(Monday).
The link for the holiday homework is given below:
Click here to download holiday homework:
2 अक्टूबर कई कारणों से प्रसिद्ध है। भारत का एक जिम्मेदार नागरिक होने के कारण हमारे लिए यह जानना जरूरी है कि 2 अक्टूबर क्यों जरूरी है ? छात्रों के लिए इन तथ्यों को जानना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
इस लेख में हम 2
अक्टूबर
के महत्व को समझेंगे :
१. महात्मा
गांधी की जयंती/गांधी जयंती –
हम जानते हैं कि 2
अक्टूबर
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती है। जिन्होंने अंग्रेजों से भारत की आजादी की
लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। बापू को उनके अहिंसा के दर्शन और समानता,
न्याय
और अधिकारों की वकालत के लिए जाना जाता है। गांधी के सिद्धांत विश्व में शांति और
सामाजिक न्याय को प्रेरित करते हैं।
१. अंतर्राष्ट्रीय
अहिंसा दिवस:
महात्मा गांधी के दर्शन और विचारधारा और वैश्विक अहिंसक आंदोलनों में उनके सर्वोच्च योगदान का सम्मान करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया।
2 अक्टूबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को विश्व स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाना शुरू किया।
यदि आप महात्मा गांधी के बारे में और अधिक पढ़ना चाहते हैं। तो आप निम्नलिखित लिंक पर जा सकते हैं:
ऐसी कई पुस्तकें हैं जिन्हें कई सरकारी
संगठनों द्वारा प्रकाशित किया गया है। गांधी जी के जीवन और संघर्षों के बारे में
कुछ ई-पुस्तकें नीचे देखें।
महात्मा: मोहनदास करमचंद गांधी का जीवन:
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नोट: उपरोक्त लिंक के लिए प्राथमिक
शिष्टाचार https://www.mkganthi.org/ है
और द्वितीयक शिष्टाचार https://librarykvnpgc.blogspot.com/2020/10/150th-birth-anniversary-of-mahatma.html
है
1. लाल
बहादुर शास्त्री की जयंती:
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था। वह भारत के दूसरे प्रधान मंत्री (1964-66) थे। वह अपनी सादगी, सत्यनिष्ठा और मानव जाति के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे।
प्रधान मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल
के दौरान,
1965 के भारत-पाक युद्ध जैसी कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। उन्होंने
प्रसिद्ध नारा "जय जवान जय किसान" भी दिया।
आप अंग्रेजी में इस आर्टिकल को भी पढ़ सकते
है । पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें -
India celebrates National Sports Day on 29 August every year. It is observed to commemorate the birth anniversary of Major Dhyan Chand. Hockey is the national game of our country.
Major Dhyan Chand is considered as the wizard (magician) of hockey in India. Hence, our Prime Minister Shri Narendra Modi Announced in 2012 to celebrate the 29th of August as a national sports Day every year to commemorate the 107th birth anniversary of Major Dhyan Chand. In 2023 we are going to celebrate the 12th anniversary of National Sports Day in our country.
The main motive to celebrate this day is to motivate the young children of our country to maximum participate in sports. Not only for the future perspective but also to remain fit in their life.
On this day every school college educational institution will celebrate the birth anniversary of Major Dhyan Chand, They conduct many activities like games and sports tournaments, Exhibitions, drawing and painting competitions, quizzes, etc. Again all these activities are to be performed to inculcate the young ones about the importance of the day so that they can understand something from the great players of our country.
Now we will see some important facts about Major Dhyanchand –
* This article has been taken from https://kvslibrary.com/ for educational purposes.
धनपत राय श्रीवास्तव ( ३१ जुलाई १८८० – ८अक्टूबर १९३६ जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, वो हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा।
उन्होंने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में रहा और बन्द करना पड़ा। प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
१९०६ से १०३६ के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में १९१८ से १९३६ तक के कालखण्ड को 'प्रेमचंद युग' या 'प्रेमचन्द युग' कहा जाता है।
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद (प्रेमचन्द) की आरम्भिक शिक्षा फ़ारसी में हुई। प्रेमचंद के माता-पिता के सम्बन्ध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि- "जब वे सात साल के थे, तभी उनकी माता का स्वर्गवास हो गया। जब पन्द्रह वर्ष के हुए तब उनका विवाह कर दिया गया और सोलह वर्ष के होने पर उनके पिता का भी देहान्त हो गया।"मुंशी प्रेमचंद अपने शादी के फैसले पर पिता के बारे में लिखते हैं की “पिताजी ने जीवन के अंतिम वर्षों में एक ठोकर खाई और स्वंय तो गिरे ही, साथ में मुझे भी डुबो दिया और मेरी शादी बिना सोचे समझे करा दिया|
मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित 10 प्रसिद्ध पुस्तकें
1. Nirmala
2. Sevasadan
3. Rangbhumi
4. Gaban
5. Premashram
6. Prema
7. Godan
8. Karambhumi
9. Shatranj Ke Khiladi
10. Namak Ka Daroga
प्रेमचंद (प्रेमचन्द) के साहित्यिक जीवन का आरंभ (आरम्भ) 1901 से हो चुका था आरंभ (आरम्भ) में वे नवाब राय के नाम से उर्दू में लिखते थे। प्रेमचंद की पहली रचना के संबंध में रामविलास शर्मा लिखते हैं कि-"प्रेमचंद की पहली रचना, जो अप्रकाशित ही रही, शायद उनका वह नाटक था जो उन्होंने अपने मामा जी के प्रेम और उस प्रेम के फलस्वरूप चमारों द्वारा उनकी पिटाई पर लिखा था। इसका जिक्र उन्होंने ‘पहली रचना’ नाम के अपने लेख में किया है।" उनका पहला उपलब्ध लेखन उर्दू उपन्यास 'असरारे मआबिद' है जो धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। इसका हिंदी रूपांतरण देवस्थान रहस्य नाम से हुआ। प्रेमचंद का दूसरा उपन्यास 'हमखुर्मा व हमसवाब' है जिसका हिंदी रूपांतरण 'प्रेमा' नाम से १९०७ में प्रकाशित हुआ। १९०८ ई. में उनका पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन प्रकाशित हुआ। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत इस संग्रह को अंग्रेज़ सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर लीं और इसके लेखक नवाब राय को भविष्य में लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर प्रेमचंद के नाम से लिखना पड़ा। उनका यह नाम दयानारायन निगम ने रखा था। 'प्रेमचंद' नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर १९१० के अंक में प्रकाशित हुई।
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